विलियम शिरेर chicago ट्रिबुने का पत्रकार था, और उसने दूसरे विश्व युद्ध पर प्रसिद्ध रिपोर्ताज लिखी। 'तीसरे रिच (REICH) का उत्थान और पतन' उसकी प्रसिद्ध रचना है। दूसरे विश्व युद्ध के पूर्व वह भारत भी आया था , एक पत्रकार के रूप में । १९७९ में, भारत छोड़ने के ४८ वर्ष बाद , उसने 'गाँधी : एक संस्मरण' प्रकाशित की। पिछले ३० वर्षों में यह किताब मुझे पहली बार अबेर य्स्त्वय्थ विश्वविद्यालय (वेल्स) के पुस्तकालय में मिली। किसी 'सुंदर कबाड़ी' (१८९८-१९८३) के व्यक्तिगत संग्रह से दान में दी गई! (हमारे यहाँ दान में dene और लेने की परम्परा विश्वविद्यालयों में है या नहीं?)
२४५ पन्नों की इस किताब में १५ अध्याय हैं। अगर आपने गांधी फ़िल्म देखी है, तो बहुत सारी समानताएं तथ्यों के रूप में मिल जायेगी। पर किताब पढ़ने का अपना आनंद है। नमक सत्याग्रह के बाद शिरेर भारत आया, एक अद्वुत आन्दोलन का सही ब्यौरा विश्व, खासकर अमेरिका, के सामने प्रस्तुत करने।
पूरी किताब में गाँधी एक तिलस्म की तरह नज़र आते हैं। एक ऐसा तिलस्म, जो बेहद मायावी, पर बेहतरीन है। काटने-मारने पर उतारू इस दुनिया में एक सुकून की तरह! गज़ब का आत्म विश्वास, आम आदमी पर मजबूत पकड़ , अत्यन्त सुलझा हुआ और लक्ष्य पर पार्थ सी नज़र! शिरेर की किताब एक आइना है, आन्दोलन की पेचीदिगियों में झांकने का। पूरी किताब में अटूट धैर्य की मिसाल के रूप में गाँधी दिखते हैं। बारीक से बारीक जानकारी रखना, तार्किक कौशल, श्रोता की मनःस्थिति पर अद्वुत पकड़, बगैर उत्तेजित हुए अपनी बात धीरे-धीरे पर मजबूती से रखने की कला, गाँधी को उम्दा कुतनितिग्यबनाती। गाँधी-इरविन और गाँधी-वेलिंग्टन वार्तालापों के बीच शिमला का बेहतरीन वर्णन औपनिवेशिक दुनिया के नए आयाम खोलती है।
एक पूरा अध्याय मार्च १९२२ के प्रसिद्ध कोर्ट दृश्य पर है, जहाँ गाँधी अपने आपको दोषी मानते हैं, पर कारणों का लेखा-जोखा देते हुए जज को नैतिक कारणों से इस्तीफा देने की सलाह देते हैं ; जज अभिभूत होता है, और उन्हें तिलक सी सजा देता है। ऐसे कई दृश्य पूरी किताब में हैं जो आपको वशीभूत करते हैं। ब्रिटेन में गाँधी भ्रमण और तत्कालीन अखबारों - times, observer, sunday express - की मानसिकता का चित्रण आपको मिल जाएगा इसमे.
यह किताब एक इतिहासकार ने नहीं, बल्कि एक पत्रकार, जो ब्रिटिश या भारतीय नहीं है, ने लिखी है. पठनीय है, पूरी तरह.
अगर आप इतिहास के उस दौर को महसूस करना चाहते हैं, जिसने आज का भारत बनाया है, तो इसे पढ़ना अनिवार्य है...
12/15/2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
8 टिप्पणियां:
सुन्दर, क्या आप इस पुस्तक का कोई लिन्क दे सकते है या स्कैन की हुई पुस्तक पढ़ने को प्राप्त हो सकती है। वैसे महात्मा स्वंम में एक तिलिस्म थे, जिन्हे समझना या तो बहुत आसान है या बहुत कठिन, बहुत कुछ निर्भर करता है व्यक्ति पर जो उनसे अपनी पहचान बढ़ाना चाहता है। वैसे आपके शब्द भी तिलिस्मकारी है जो किसी भी व्यक्तित्व को तिलस्मी बना सकते है।
Gaandhi jaisa ekhee Mahatma jagat me paida hua...aapne kitab ke bareme badi achhee jankaaree dee hai...zaroor apne sangrah me rakhna chahungi!
Gandhi film to na jane kitnee baar dekhi aur kitnee baar zaroraar ro dee...aisa tilismi wyati apne aapme akela tha...
Gandhiji ka badee warnan kiya hai...aisa jadugar duja nahee...aisehee mahakal use khoke nahee roya!
मैं हमेशा से गांधी जी के व्यक्तित्व का कायल रहा हूँ । मैनें गाँधी फ़िल्म देखी है । काश यह पुस्तक पढ़ने को मिल जाती ।
jandar,shandar,damdar.narayan narayan
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई। मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।
ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
pls visit
http://dweepanter.blogspot.com
yeh pustak amazon.com par uplabdh dikhti hai
एक टिप्पणी भेजें