इधर उधर की बातें
कई दिन से जिंदगी की आपाधापी में इधर उधर की बातें करने की इच्छा पनप रही थी!
जिंदगी की आपाधापी में कब सुबह होती है या शाम, होश नहीं रहता! हर कोई इतना व्यस्त है कि अपने अन्दर झांकने का वक्त ही नहीं मिलता।
इधर उधर, आस पड़ोस और ख़ुद छूटता जा रहा है, शनैः-शनैः...
क्यों न कुछ इधर उधर कि बातें हों, जिसमे थोड़ा आस पड़ोस हो और बहुत ज्यादा ख़ुद...
देखें, वक्त के साए में इधर उधर जिंदगी कि गर्मी में कितनी छाँव ढूंढ पाता है...
जिंदगी हर वक्त साँस लेती है , इधर-उधर
दूर इससे हम, ढूँढते हैं सुकून ...
1/18/2009
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