2/14/2009

वैलेंटाइन दिवस के बहाने

वैलेंटाइन दिवस की उहा-poh पोह,

पिछले एक हफ्ते से ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में मुतालिक और उनकी सेना के विचारों से मध्यवर्गीय मानस को आक्रांत किया जा रहा था- वैलेंटाइन दिवस और भारतीय प्यार का द्वंद्व। प्यार का खुल्लमखुल्ला प्रदर्शन, नहीं... प्यार करना है तो बेडरूम में जाओ! खुल्लमखुल्ला प्रदर्शन करना है तो पहले एक चुटकी सिन्दूर डलवा लो... वाह रे भारतीय संस्कृति!

संस्कृति के खतरे और उन्हें निर्धारित करने वाले ये ठेकेदार...

एक फ़िल्म, american history x, देखने का मौका मिला था, जो neo-नाज़ी विचारधारा अमेरिका में लाना चाहते हैं . वर्ण व्यवस्था और उसके द्वंद्व का सहज परन्तु कारुणिक चित्रण है, इसमे. हम भी तो इससे जूझ रहे हैं... अलग अलग स्तर पर, अलग अलग मुद्दों से..

क्या है हमारी संस्कृति? कोई जड़ या कोई स्थिर अवस्था? किस विचारधारा का हम पालन करते हैं और किसे हम फलते-फूलते देखना चाहते हैं..

क्या हमारी संस्कृति किसी valentine  दिवस की फूँक से उड़ जायेगी, या इससे और मजबूत होगी..

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