7/15/2010

हवा बदलिए (दो)

(आगे) 
आधुनिक इंसान को अगर कोई समस्या सुलझाने के लिए कहा जाए तो वह या तो प्रतिउत्पनमतित्व का रास्ता अपनाएगा या जय हो गूगल महाराज का जय घोष कर निदान लाएगा. धनेसर पुरातन था, आजादी के पहले सांस ली, आँखें खोली और रोया भी .. आधुनिक होने की पहली शर्त है.. स्वतंत्र भूमि में जन्म लेना. पर धनेसर के बप्पा ने कुछ जल्दी कर दी क्योंकि चर्चिल के चुनाव में हारने की खबर  और  एटली के इरादे उन तक पहुँच नहीं पाए थे.. खैर अब गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या फायदा ..


पुरातन इंसान को समस्या सुलझाने में वक्त लगता है.. जैसे बकौल गुलेरी 'मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ़ हो जाती है..', वैसे ही यह इंसान अपने बीते दिनों की तह में जाता है, आज के सवाल का हल खोजने.. 


अब  धनेसर को क्या मालूम कि जलवायु परिवर्तन का तूफ़ान तो खासा ताज़ा है.. हज़ारो सूरमा वैज्ञानिकों की मशक्कत और मिहनत से हम समझ पा रहे हैं कि  हिमालय पिघल रहा है ..समंदर में पानी बढ़ रहा है और प्रलय आने वाला है.. वैसे ये और बात है कि दुनिया में इसकी जंग भी छिड़ी हुई है कि 'क्या ये सच है या सच का पहाड़' .. पर इतना तो सच है कि इस ताजे तूफ़ान से कई लोगों का चूल्हा जल रहा है, कई रोटियां सेक पा रहे हैं..और ब्रेकिंग  न्यूज़ के रास्ते हर समय उधम मचा रहे हैं.. धनेसर इन सबसे परे अपने पोते के लिए कुछ तलाश रहा था ...


खिलावनपुर के उस प्राथमिक स्कूल में, जहाँ पांचवी तक पढ़ा था, पछिया और पुरवा दोनों के झोंके धनेसर को  झकजोर जाते थे. खिड़की और दरवाजे से सर्र सर्र हवा बहती थी. गुरूजी तब मास्साब नहीं बने थे, 'सर का तमगा' कब लगा इसपर अनुसन्धान होना बाकी है . बड़े अच्छे गुरूजी थे. क्या चांटे पड़ते थे सबक याद न करने पर..डर के मारे पेशाब निकल जाता था ...पर धनेसर बच जाता था सबक याद कर ... और आज के समय, उसने सुना कि पीटना तो दूर डांटना भी मुश्किल था स्कूल में ..कभी कभी वो घबरा जाता था पोते को लेकर, पता नहीं सबक याद करता भी है या नहीं. पर अंग्रेजी स्कूल में शायद ऐसा ही होता हो... 


सो खिलावनपुर के उस प्राथमिक स्कूल में एक पाठ था.. जलवायु और हम... अकेले गुरूजी सब कुछ पढ़ाते थे.. धनेसर को आज भी याद है... प्रलय आया तो दुनिया बनी ... (पुनश्च )  
      

कोई टिप्पणी नहीं: