तकनीक हमारी जिंदगी को आसान नहीं, बल्कि जटिल बनाता है! इस अकूत सत्य को स्वीकारना कडवे नीम को चबाना सदृश है.आधुनिक मनुष्य नित नयी खोजों के साथ जिंदगी को सहज और सरल बनाने का दावा पेश करता है. बाज़ार इन नयी उत्पत्तियों को मादक चाशनी में लपेट उपभोग का मायाजाल बुनता है. भौंचक आप इस चुम्बकीय डोरी को पकड़ने की कोशिश करते हैं. आपकी तृष्णा-अर्थ, काम या धर्म- अवचेतन से चेतन तक का सफ़र तय करने के लिए जोर मारने लगती है. तकनीक का तृष्णा से गहरा रिश्ता बनता है, शनैः शनैः. इन्हीं तकनीकों में से एक है facebook .
facebook पिछले ६ सालों में एक धूमकेतु की तरह तकनीक की दुनिया का सर्वमान सितारा बन चुका है. लगभग ७०० अरब रुपये के बाज़ार भाव वाली इस तकनीक ने इंसानी गप्पबाज़ी को मोहरा बनाया और बिखरती संवाद विहीन होती दुनिया (हालांकि यह दुनिया आज भी उन तक सीमित है जो समर्थ और सक्षम कहलाते हैं ) को अपने कब्जे में ले लिया है. हर कंप्यूटर साक्षर मनुष्य इससे प्रभावित है. हर कोई मित्र है और मित्रता की नयी परिभाषा गढ़ी जा रही है. आप किसी को भी नेवता दे सकते हैं, मित्र बनने का या बनाने का. एक क्लिक और मित्र की गिनती बढ़ जाती है. धीरे धीरे एक ऐसा समूह (समाज नहीं) तैयार हो जाता है, जहाँ रिश्तों की मर्यादा के मायने बदल रहे हैं. पुरानी यादें ताज़ा तो होती हैं, पर भूले बिसरे घाव भी उभरने लगते हैं. संवाद की नयी ईमारत, जिसकी नीव पर प्रश्नचिन्ह लगा है, खड़ी हो जाती है, जो बाहर से अत्यंत आकर्षक और मनमोहक नज़र आती है. इस दुनिया में आप अपने आपको सुरक्षित और भरोसेमंद पाते हैं. आप अपनी क़द्र और अहमियत यहाँ तलाशते हैं. पर अन्दर से आप जानते हैं, कि ऐसा नहीं है. यहाँ ज्यादा लोग हैं, मित्र नहीं! इस नए समूह का चरित्र भरोसे वाला तो कदापि नहीं है. किस तरह और कब आपकी जिंदगी के बेहद अपने भाव आम में बदल जाते हैं, आप जान भी नहीं पाते. आप अपनी जिंदगी के सबसे बड़े सच 'स्व' को धीरे धीरे तिरोहित कर देते हैं अपने नए मित्रों के सहयोग से आपको आभाष भी नहीं होता.
यह नयी दुनिया है. तकनीक की तृष्णा से घुली मिली दुनिया. यहाँ हर सम्बन्ध एक सा है, वगैर किसी तह का. वास्तविक जिंदगी से, जहाँ हर सम्बन्ध अनूठा और जुदा है, ये काफी अलग है. आप वसुधैव कुटुम्बकम के तिलस्म में धीरे धीरे खोते जा रहे हैं. इसका हश्र क्या होगा? एक पुरानी सूक्ति याद आ रही है, जो मुझे इससे जुडी दिखती है :
facebook 'स चरित्रं, मनुष्यश भाग्यम,
देवो ना जानाति कुतो मनुष्यः!
11/19/2010
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